ख़ाब हो गए




वो, जो थे कभी मेरे,
किसी और का ख़्वाब हो गए।

बसा ली नई दुनिया हमसे दूर कहीं
हम तो यादों में उनकी बरबाद हो गए।

लूट ले गए वो ज़र्रा ज़र्रा हमसे,
और ख़ुद तो महलों में आबाद हो गए।

हँसी, खुशी, प्यार, दर्द
सब किसी और के नाम लिख दिया,
सुनने को आवाज़ तक उनकी, हम मोहताज़ हो गए।


अल्फाज़

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