कभी तुम भी समझो, इस चाँद का इशारा,
क्यूँ आता है हर रोज़ ये, तुम्हारी छत पे बेचारा।
यूँ ही वक़्त ये अपना, ज़ाया नहीं करता,
देखकर सबको ये, मुस्कुराया नहीं करता।
जिसकी चाँद की झलक के लिए, दुनिया बेताब रहती है,
उस चाँद की नज़र तेरी खिड़की पे, सारी रात रहती है।
ज़रा खिड़कीयों के परदों को, गिरा के सोया करना,
याद में मेरी, ज़रा धीरे धीरे रोया करना।
मेरे इश्क़ में चूर हो तुम, ये ख़बर उस चाँद तलक न जाए,
देखकर बेइंतहा इश्क़ ये, कहीं उसका दिल टूट न जाए।
कुछ ख़ास ही नज़र आया होगा इसको भी तुममें,
शायद तभी से लगा है, ये ख़ाब तेरे बुन ने।
मेरा चाँद तो मेरे पास है, पर वो चाँद कईयों की आस है।
अल्फाज़
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