तू सामने है



तू सामने है महलों में, पर अब भी तेरा इंतज़ार है, 
क़ैद है तू वहाँ, और दिल तुझे छूने को बेक़रार है
तुझे तो शायद मुकम्मल हो गया होगा वो जहाँन 
पर यहाँ तो रूह मेरी मेरे ही जिस्म से फ़रार है । 

खैर कोई बात नहीं, मुबारक़ हों ये तमाम् खुशियाँ तुम्हें
हर दुआ, हर शोहरत, हर इज़्ज़त, हर मुक़ाम, तुम्हें
मेरे हिस्से में जो आया, शिद्दत से क़ुबूला है, 
बस एक चाह थी तेरी, और आज उसी से दरकिनार है। 

अल्फाज़


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