कल और आज




आज फ़िर रूठे हुए दिखते हो?
अब तुम्हें कौन मनायेगा? 
मैं था, तो आँसू पोंछ देता था, 
अब तुम्हें कौन हँसायेगा? 

चमक खो सी गयी है चेहरे की
अब कौन निखार लायेगा? 
मैं था, तो सवाँर देता था ज़ुल्फ़ें, 
अब तुम्हें कौन सजना सिखायेगा? 

हर नज़्म लिखी खातिर तेरी, 
अब कौन ग़ज़ल बनायेगा? 
मैं था तो लिखता था पन्नों पे तुम्हें
अब तो ये क़लम भी टूट जायेगा। 

 अल्फाज़

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