सामने है रस्ता पर
वीरान सा है।
ज़िंदगी बोझ जैसे कंधों पर
समान सा है
मुस्कुराहट के पीछे एक और चेहरा है जो
परेशान सा है
सफल हुआ या असफल रहा इस सोंच मे
दिमाग ये, हैरान सा है
खैर भीख नहीं पड़ी मांगनी,
उन चंद भिखारियों से,
इस बात से मन शांत सा है,
मर कर भी, दुनिया में ही रहूँगा, हर उस दिल में,
जो दिल सुशांत सा है।।।।
अल्फाज़
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