शीशों पे कई बार उतारा है ,


शीशों पे कई बार उतारा है ,



हमने भी महब्बत को, 

शीशों पे कई बार उतारा है , 

आँसुओं में सनी जुल्फ़ों को कई बार साँवरा है , 

क्या हुआ जो अब हम उनके ज़िक्र में नहीं शामिल , 

ऐसे न सही ,कम स कम शीशों पे, तो वो हमारा है


अल्फाज़

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