उनकी दिल्लगी का क्या


उनकी दिल्लगी का क्या


उनकी दिल्लगी का क्या, वो हमें यूँ ही भूल जायेंगे

जख़्म तो हमको मिले हैं, जो एक दिन नासूर बन जायेंगे 

वो तो बसा के घर अपना, कहीं दूर चले जायेंगे

हम तो ठहरे मुसाफ़िर इस ज़मीं के, यूँ ही गुज़र जायेंगे 

-अल्फाज़

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