है कोई यहाँ




कोई है यहाँ



कोई है यहाँ? या हम ही अकेले ग़मों के मारे हैं
सुना था के मयख़ाने में, हम से कई और बेचारे हैं

कोई बात नहीं यारों आज फ़िर अकेले ही सही
कम से कम नशे में जो दिखते हैं, वो तो हमारे हैं। 

ग़मों को लाकर यहाँ, हम गिलास में मिलाते हैं
थोड़ा सा पानी,
थोड़ी सी शराब, घोल के हर दर्द एक बार में पी जाते हैं। 

कई बार करी कोशिश, के ना गुज़रें सड़क से उनकी, 
पर ये कदम ही धोकेबाज़ हैं, के उस ओर मुड़ जाते हैं। 

शौक किसे होता है? खुद को शराब में जलाने का,
उन्हें भूलने की खातिर, हम पीते ही चले जाते हैं। 
अल्फाज़


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