सफ़र- ख़त से मेल तक


सफ़र- ख़त से मेल तक

एक ज़माना गुज़र गया, ख़त कोई लिखे हुए
ख़यालों को क़लम से, काग़ज़ पर लिखे हुए

जब भी ख़बर कोई, ख़ुद में ख़त समेट लाता था,
काग़ज़ का वो टुकड़ा, खुशबू भी साथ लाता था,

लिखते लिखते आँसू की बूँदों का गिरना,
लफ़्ज़ों का इन बूंदों में, फ़िर लिपटे रहना।

कई बार रुलाता था, वो ख़त, कई बार हंसाता था,
हो ख़बर ख़ुशी की या ग़म की, एहसास कराता था

वक़्त ने ली करवट, ख़तों को दबा दिया,
हाथ में सबके, एक मोबाइल थमा दिया।

खत्म हुई सब दूरी, रिश्ते तक ख़तम हुए,
मैसेज मैसेज के चक्कर में, घर तबाह हुए,

सुबह मिले लैला मजनू, और शाम से पहले बिछड़ गए
प्रेम ग्रंथ रचते थे तब जो, ईमेल बॉक्स में सिमट गए।

प्यार की भाषा "Love" से सीधे इस "luv" तक जा पहुँची,
चंद दिनों की गुस्सेदारी, breakup तक जा पहुँची।

अल्फाज़

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