एक ग़ज़ल ऐसी भी



एक ग़ज़ल ऐसी भी,

सामने तेरी आँखो का समन्दर

और 

मेरी बेलगाम क़लम, काग़ज़ की क़श्ती पे 

मेरे दिल का सैलाब उड़ेल दे, 

बहा ले जाए वो मेरे संग तुझे 

मुहब्बत के हमारी ज़माने में, निशान छोड़ दे। 

-अल्फाज़

Comments