शहर की रात


शहर की रात

एक किस्सा, शहरों की रात का,
बिखरे हुए लोग, और सोये हुए जज़्बात का। 

जगमग उजालों के बीच, टूटते रिश्ते, 
सड़कों पे सोये बेघरों को रौंदते फरिश्ते। 

यहाँ प्यार भी पैसों में बिकता है, 
ख़रीदार सही मिले तो हर जिस्म यहाँ बिकता है। 

चादरें साफ़ हैं, पर दिल यहाँ काले हैं, 
क़द छोटा, पर माथे पे गुरूर के कई माले हैं। 

जवानी यहाँ बिस्तरों पे बिछती है, 
हैवानियत भी सूट और बूट के पीछे छिपती है। 

शोर शराबे के बीच, अकेलेपन से मुलाकात का, 
ये किस्सा है, शहरों की रात का।

अल्फाज़

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