सियासत



सियासतें


सियासतें लौट रही है ज़रा संभल कर लिखिये

"कलम" तो "कलम" उंगलियाँ भी "कलम" हो सकती हैं।

आज़ादी बस कहीं एक सपना सा न रह जाए,

आवाज़ ज़रा धीरे उठाइये, वरना गरदन भी कलम हो सकती है

अल्फाज़

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