तुम्हें हक़ है


तुम्हें हक़ है


मेरे सपनों में आने का, मुझे हर पल सताने का,
रूठूं तो मनाने का, रोऊँ तो हँसाने का, 
तुम्हें हक़ है। 

मेरी बिंदिया में सजने का, मेरी आँखो में बसने का,
मेरे होंठो की बन लाली, मेरी आवाज़ बन ने का, 
तुम्हें हक़ है। 


मेरे हर दर्द में शामिल, मेरी खुशियोँ में तुम शामिल
मेरी छोटी सी दुनिया में, हर एक एहसास बनने का
तुम्हें हक़ है। 


मेरी सुबहा तुम्ही से हो, मेरी हर रात तुम पर हो
मेरी हर साँझ को हर दिन, रौशनी से भरने का
तुम्हें हक़ है। 


मेरे गजरे की खुशबू तुम, मेरी पायल की छन छन तुम
मेरे कंगन की खन खन में समाने का, 
तुम्हें हक़ है। 


वजह तुम मेरे जीने की, सांस बन कर के बहने की
बंद हो जाएं ये ग़र आँखे, मुझे हर जनम् में पाने का, 
तुम्हें हक़ है। 
बस तुम्हें हक़ है। 


 अल्फाज़



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