वहम था मेरा





वहम था मेरा के वो मेरा था

वो किसी और की शाम का सवेरा था

हम तो यूँही दिल लगाने की ख़ता कर बैठे

उसे , अपने क़ाबे का ख़ुदा कर बैठे

वो तो आज या कल अपने रस्ते चला जायेगा

कसम उसी ख़ुदा की वो बहुत याद आयेगा

खैर हर रात के हिस्से में सवेरा कहाँ होता

समंदर के बीचो बीच बसेरा कहाँ होता

अब डूबना ही है तो, तेरी बची हुई यादों में डूबेंगे

वहम हो मेरा, या हो मेरा वजूद,

हम कुछ भी ना भूलेंगे !!!


 - अल्फ़ाज़

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