आख़िरी बार तुम्हें मैंने,
उस मोड़ पर देखा था
बहुत से अरमानों को,
अपने दिल में समेटा था
वो चंद लम्हें रुक से गए थे
बढ़ते कदम मेरे थम से गए थे
हाँ या ना की कश्मकश में ,
साँसे मेरी रुकने लगीं थी
पर अगर ना बढ़ता आगे तो ,
एक इंतज़ार की लंबी घड़ी थी
फिर हिम्मत जुटाई और कदम बढ़ाये
तेरे साथ जीवन के सपने सजाये
होंठो पे मुस्कान थी, और चेहरे पे चमक
अभी से बज रही थी कानों में, तेरी चूड़ियों की खनक ,,
इतने में सामने से किसी और का आना हुआ
उन्हें बाहों में भर कर सीने से लगाना हुआ
आज बिजली को आसमां से गिरते हुए देखा था
खुशनुमा दिल को टुकड़ो में बंटते देखा था
बस कदम पीछे किये,
आँखों में इन, आँसू लिए ,सांसो को थमते देखा था
-अल्फ़ाज़
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