आईना मत देखना





आज आईना मत देखना तुम,मैं चाहता हूँ

मेरी कल्पना को मेरी आँखों में तुम खुद देखो
सजो, सवरों जो भी करो, इन आँखों के ज़रिये

क्योंकि, तुम्हारी खूबसूरती कोई आईना क्या बयाँ करेगा
जो भी करेगा, मेरा दिल मेरे कलम के ज़रिये पन्नों पर बयाँ करेगा

किसी और की मिल्कियत नहीं हैं मेरे ये अल्फ़ाज़,
ये सिर्फ़ तेरे दामन को सजाने वाले चन्द सितारे हैं !

इनका अंजाम भी तुम से है और तुम से ही आग़ाज़,
ये सिर्फ तेरी मुस्कान से ही मुस्कुराते हैं !

जब चूमती हो लबों से तुम लिखावट मेरी,
इनमें जान सी आ जाती है!

काबिल हो जाता है लिखना मेरा तेरी इस छुअन से,
ये कलम तेरी शान में झुक जाती है!


-अल्फ़ाज़

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