ज़िंदगी के दर्द को स्वीकार कर
गिर गया है तो,
फिर से उठने का प्रयास कर
धूप में तपा के खुद को आग कर
खुद पे उठते प्रश्र को, जला के राख कर
ऊँचा देख ऊँचा सोंच आगे बढ़
औरों की तू सोच को ना खुद पे मढ़
विचार कर संभाल कर कदम बढ़ा
झोंक खुद को कर्म कर तू कुछ बड़ा
तुझे तो इस समय को भी हराना है
ज़मीं पे रख कदम, अभी तो आसमां तक जाना है
समय को ना तू व्यर्थ कर
कर्म कर तू कर्म कर
जिन्दगी के दर्द को
स्वीकार कर
स्वीकार कर
अल्फ़ाज़
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