रात का रंग




रात का रंग गहरा सा होता गया ,,,
मेरे सपनों पे , तेरे सपनों का पहरा सा होता गया ,,,

फिर चाँद आसमां में दूर से मुस्कुराया
उसी वक़्त तेरा चेहरा साफ नज़र आया

सूनसान अंधेरे में थी , तेरी साँसे गहराई सी
थर थर काँपे अंग तेरे , थी बाहों में घबराई सी

मद्धम खुशबू बालों की तेरे , फिज़ा फिज़ा में लेहरायी ,,,
खेल गयी तेरी आँखे , जब देख मुझे वो शरमाईं ,,,

फिर रात के गेहरे रंग को , हम दोनों ने था ओढ़ लिया ,,,
साँसों पे रख कर साँसे एक दूजे को खुद से जोड़ लिया ,,,,


-अल्फ़ाज़

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