अपने ख़ालीपन को भरते हैं


अपने ख़ालीपन को भरते हैं



इन पन्नों पर अल्फाज़ों से, हम खालीपन को भरते हैं,

हैं साथ तेरे,पर न जाने क्यूँ तन्हा तन्हा से रहते हैं ।

ना जाने कैसा रिश्ता जुड़ गया है इन अल्फ़ाज़ों से,

ये लफ़्ज़ मेरे अब हर लम्हा संग मेरे साँसे लेते हैं ।

तुमसे कोई बैर नहीं,ना तुमसे कोई लड़ाई है,

पर इन लफ़्ज़ों ने ही दुनिया में, कीमत मेरी बढ़ाई है।

अब अच्छा लगता है सूनापन, अपना लगता है खालीपन

क्यूँकी

इस खालीपन को हम पन्नों पर, अल्फ़ाज़ों से भरते हैं ,

हैं साथ तेरे , पर न जाने क्यूँ तन्हा तन्हा से रहते हैं ।

-अल्फाज़

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