तुमको शायद याद नहीं


मैं कहती थी,तुम सुनते थे
मैं लिखती थी, तुम पढ़ते थे

कितने अच्छे वो दिन थे 

बस हम थे, सब हम थे 

खो गया किताबों के पन्नों में

जगता ये एहसास कहीं

तुमको शायद याद नहीं 
तुमको शायद याद नहीं 

जब रोती थी तुम होते थे 

जब हँसती थी तुम होते थे

हर लम्हे में एक दूजे के 

हम दोनों हर पल होते थे 

मर गया दरख्तों में दब के 

जीते जी ये प्यार कहीं 

तुमको शायद याद नहीं
तुमको शायद याद नहीं 

अल्फ़ाज़

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