हमारे लिए भूख क्या है ?
शायद पेट में मची हल्की सी बेचैनी
और बस फिर तमाम तरह की चीजें उसे शांत करने के लिए ,
मगर जब भूख को सड़क पर सोते हुए परिवार के नज़रिए से देखा
तो हमारा नज़रिया ही बदल गया ,
उनके लिए भूख हल्की सी बेचैनी नहीं ,
बल्कि वो बेचैनी थी जिसे हम कभी महसूस नहीं कर पाए ,
उन्हें उसी बेचैनी के साथ पसीना बहाना था
उसी के साथ लहू सुखाना था
खुद उस रात भी भूखा ही सोना था
पर बच्चों को कुछ खिलाना था ,,
खाने में वो चावल था, जिसे हम चावल नहीं कहते ,
खाना तो दूर, उसे देखना भी नहीं पसंद करते ,
उस थाली में खाली चावल और थोड़ा नमक था ,
पर उन चेहरों पर जो मुस्कान थी, उसका एक अलग ही अनुभव था ,
हमें भूख लगे तो खाने डिलिवरी घर तक ,
और उनकी भूख पर पसीना ज़मी तक ,
जब उनकी माँ अपना लहू ज़मीन में बोती है ,
तब जाके कहीं उनके हाथ में एक वक़्त की रोटी होती है !!!
-अल्फाज़
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