तेरे दर पे आशिक़ों की, चाँद तक लंबी क़तार लगती है
मेहफ़िल में तेरी, इश्क़ के भूखों की बहार लगती है
सुना है
नज़रों की तेरी धार जैसे, बाबर की ज़ुल्फ़िकार लगती है
फ़ज़ाओं में आब-ए-हयात् की जैसे बयार चलती है
गुज़रा था कल की रात को देखने तेरा करिश्मा,
मुझको तो वो चौखट तेरी, उजड़ी मज़ार लगती है
-अल्फ़ाज़
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