याद है मेरा चेहरा? या भुला दिया हमको।
इतने दिन हुए ,कोई पैग़ाम आ जाता,
ख़त आपका लेके कोई रहमान(दयालू) आ जाता।
हम चूमते ख़त को दुआएँ आपको देते,
बलाएँ आपकी सारी हम अपने सिर पे ले लेते।
बना के आपकी यादों का तकिया,सिरहाने हम सजा लेते,
आप आते या ना आते, मुजस्सिम हमको हो जाते।
गुज़र जाता बचा हर दिन, वो हर एक शाम, बची हर रात,
सहारे आपके ख़त के, ज़िंदगी लेते अकेले काट।
मगर अफसोस, न कुछ आया, ना तुम आये, ना ख़त आया
कर बैठे गुज़ारिश आपसे बस एक चिट्ठी की,
वो जब अज चाँद देखा तो उसमें भी तू नज़र आया।
-अल्फाज़
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