हर कोई यहाँ मजबूर है,
रेखा के इस पार या उस पार, हम सब मज़दूर है
किसी का संघर्ष दो वक़्त की रोटी से है
और किसी का बस आज भूखा ना सोने से है
किसी के सिर पर उधार है
तो किसी के माँ बाप बीमार हैं
दोनों ही अपने में मजबूर हैं
कोई और नहीं, हम हम भी मज़दूर हैं
कोई जीने को बेताब है, तो कोई मरने को बेचैन
कोई महलों में सोये,और कोई जागे सारी रैन
उनकी मजदूरी ' सोने ( Gold ) के लिए
हमारी मजदूरी " सोने " ( sleep ) के लिए
इस अजीब सी दुविधा में,
वो भी मजबूर हैं, और हम भी मजबूर हैं
कोई फर्क नहीं यहाँ,
हम भी मज़दूर हैं, वो भी मज़दूर हैं
-अल्फाज
Comments
Post a Comment
if any one have doubts then plz let me know