आख़िर कब तक अल्फाज़ों को यूँ ही पन्नों पे उतारा जाए?
सोंचता हूँ कोई, आज़ादी का गीत बनाया जाए।
गर्त में जा रहे अपने भारत को,
एक बार फ़िर से उबारा जाए।
कब तक लोगों को घुट घुट के मरते देखा जाए?
कब तक किसानों को पेड़ों से लटक कर झूलते देखा जाए?
कब तक विद्यार्थियों को लाठियों से पिटते हुए देखा जाए?
कब तक औरतों पे तेज़ाब और पिछड़ों को नालों में उतारा जाए?
यही वक़्त है दोस्तों, राम और रहीम को मिलाया जाए,
बुलंद आवाज़ में, एक बार फ़िर से इंक़लाब गाया जाए
अल्फाज़
Till when? I will write on papers,
Now time to make a FREEDOM SONG.
It is the time to make BHARAT again as a leader
How long will the poore die for bread?
How long will the farmers hang on the trees?
How long will the students beaten by goons?
Till when women will attacked by acids and lower communities will serve in sewage?
Now the time has come, to meet RAM and RAHIM
now the time has come to sing INQALAB (freedom song), again,,,,
अल्फाज़
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